
Y A T I N D R A S H I N D E
* धुव्वा *
मायूसी-गर है तो जरुर कोई दिल की बात है।
फिक्र-ए-दुनिया तो हम हवा मे उडाते है।
मत झुलसना तुम उन तमन्नाओं-ए-आशकी मे ।
उन पिंजरों मे से अकेलापन अक्सर आजादी नजर आता है।
सह सके तो सह ले मरीज-ए-दिल तु ,
मुकाम से कई ज्यादा रूहानी तो रास्ता नजर आता हैं।
पाना क्या है जिना क्या है लम्हा लम्हा जब फिसल जाता है,
तुकडो मे बटां वही सपना सिर्फ मन्नतों मे पुरा नजर आता है ।
इश्क के लंबे बेजान दौर मे युही कभी दौराहा आता है ।
गुमशुदा मासुम वो गुनहगार-ए-बेवफाई नजर आता हैं ।
कोसते हैं उन काफिरों को फिर जिंदगी भर अपनी मिसाल-ए-पाक से । जिनके प्यार मे फिर भी हमे खुदा नजर आता हैं।
रख के गिरवी हमारी खुदाई उनके सराब मे ।
हमारा आशियाना बस एक रेगिस्तान नजर आता हैं।
दिमागो में नही दिलों मे मिलते हैं मायने इस हयात के,
पर दिल का यु होना फिर क्यों पागलपन नजर आता हैं।
किसी का होना ही-गर तुम्हारी मंजिल थी,
तो खुद का खुदसे रिश्ता एक ख़ता नजर आता हैं।
नफीस ही था दिल्लगी का वह नुर-ए-कोहर,
मुहोब्बत का हर एक रंग अब हमे धु्व्वा नजर आता हैं।
-यतिंद्र २०१७